लेखनी कविता - सुनो, डाकिए भाई ! - बालस्वरूप राही
सुनो, डाकिए भाई ! / बालस्वरूप राही
सुनो, डाकिए भाई,
एक पत्र मेरा भी ला दो,
दूँगा तुम्हें मिठाई।
कहो, बड़ों से क्या पाते हो,
बस उन के ही खत लाते हो,
मुँह तकते ही हम रह जाते,
पत्र हमारा कभी न लाते।
सुनो डाकिए भाई,
तुम तो पढ़ लेते ही होंगे
अच्छी बुरी लिखाई।
एक मित्र को खत लिक्खा था,
शायद पता गलत लिक्खा था,
उस की खोज- बीन करवाना,
जल्दी उस का उत्तर लाना।
सुनो डाकिए भाई,
अपने टिकटों के एलबम से
दे दूँगा चौथाई।